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Tuesday, 18th June, 2019
मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा मनाए गए ‘आत्महत्या रोकथाम’ दिवस में वक्ताओं ने कहा कि जागरूकता के द्वारा आत्महत्या जैसे कलंक को रोका जा सकता है। वक्ताओं ने लोगों के बीच हर स्तर पर चलाए जा रहे अभियानों की उपयोगिता के बारे में विस्तार से जानकारी दी। मुख्य वक्ता डा. रजनीश त्यागी ने बताया कि विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर की गई थी और यह एक महत्वपूर्ण वकालत और संचार आधारित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय संगठनों, सरकारों और आम जनता तक पहुंचना है तथा यह संदेश देना है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है। इन प्रयासों में आत्महत्या रोकथाम दिवस को एक प्रभावी उपकरण माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट, आत्महत्या की रोकथाम: एक वैश्विक अनिवार्यता ( 2014) इसे एक नीतिगत उपलब्धि के रूप में चिह्नित करती है, जिसमें कहा गया है कि इस दिन ने राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर अभियानों को प्रेरित किया है और जागरूकता बढ़ाने तथा कलंक को कम करने में योगदान दिया है। डा.रजनीश ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक आत्महत्या रोकथाम पहल का उल्लेख इसके कार्यान्वयन की मुख्य रणनीति के संबंध में किया गया है, जिसमें "आत्मघाती व्यवहारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा उन्हें प्रभावी ढंग से रोकने के लिए वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय गतिविधियों का आयोजन, आत्महत्या रोकथाम के लिए राष्ट्रीय नीतियों और योजनाओं को विकसित करने और उनका मूल्यांकन करने के लिए देशों की क्षमताओं को मजबूत करना शामिल है। इससे पूर्व तृतीय सेमेस्टर की छात्रा कु. श्रुति कर्मकार ने विषय का परिचय देते हुए बताया कि आत्महत्या के कई जटिल, परस्पर संबंधित और अंतर्निहित कारक होते हैं जो दर्द और निराशा की भावनाओं को बढ़ा सकते हैं। आत्महत्या के साधनों खासकर आग्नेयास्त्र, दवाइयाँ और ज़हर तक आसान पहुंच होना भी एक जोखिम कारक है। इस मौके पर सेमिनार हॉल में कविता, ओपन माइक और पोस्टर मेकिंग जैसी प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया, जिनमें 200 से अधिक विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रथम वर्ष और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दुरुपयोग पर एक विचारोत्तेजक नाट्य प्रस्तुति दी, जिसमें यह दर्शाया गया कि इसका गलत प्रयोग आत्महत्या प्रवृत्तियों का कारण बन सकता है। मनोविज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने आयुर्वेद भवन के सामने एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया, जिसमें तुलना, शैक्षणिक असफलता, टूटे विवाह, लैंगिक समानता और पुरुषों की छिपी हुई आवाज़ जैसे मुद्दों को उठाया गया। नाटक का समापन एक गीत के साथ हुआ, जिसने आत्महत्या रोकथाम के महत्व को सशक्त रूप से उजागर किया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. श्रेया शर्मा ने किया और अंत में डॉ. मोनिका अब्रोल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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